12 साल के गणेश ने 500 रूपए से भी कम की लागत में बनाया मकेनिकल छलनी

Shilpi Soni
7 Min Read

“एक बच्चे के लिए उसकी सबसे पहली शिक्षक मां होती है। अगर मां चाहे तो अपने बच्चे के दिल में बचपन से ही नेकी और अच्छे कार्यों के बीज बो सकती है और यह बीज समय के साथ आपको मीठा फल देंगे। इसलिए मैं भी अपने बेटे को सामाजिक कार्यों से जोड़ रही हूं ताकि वह आगे चलकर अपनों की जिंदगी में बदलाव का कारण बने। “

12 साल के बच्चे ने बनाई 500 रु से भी कम की छननी, बिना किसी मेहनत के साफ़ कर सकते हैं अनाज!

यह शब्द महाराष्ट्र के यवतमाल जिले में स्थित भोस गांव में रहने वाली एक साधारण सी गृहिणी अमृता खंडेराव के है। ग्रामीण परिवेश में बचपन गुजारने से अमृता ने गांव के जीवन को बहुत अच्छे से जाना है। इसलिए वह गांव की महिलाओं और लोगों के लिए कुछ करना चाहती थी। अमृता का यह मानना है कि हम किसी भी बड़े बदलाव की उम्मीद एक दिन में नहीं कर सकते बल्कि हर दिन हमें छोटे-छोटे परिवर्तन लाने के लिए प्रयास करना चाहिए और उन्हें जोड़कर एक पूरी तस्वीर बनानी चाहिए। अमृता के इस उम्दा सोच से प्रेरणा लेकर अपने जीवन में लोगों के लिए बदलाव लाने की ओर चल पड़ा है उनका 12 वर्षीय बेटा बोधिसत्व गणेश खंडेराव।

12 साल के बच्चे ने बनाई 500 रु से भी कम की छननी, बिना किसी मेहनत के साफ़ कर सकते हैं अनाज! - The Better India - Hindi

गणेश कक्षा सातवीं का छात्र है और पढ़ाई लिखाई में हमेशा अव्वल आने वाला यह बच्चा बहुत ही होनहार है। बचपन से ही अपने मां के विचारों से प्रभावित होकर गणेश ने 6 साल की उम्र में ही समाज और पर्यावरण के लिए कार्य करना शुरू कर दिया था।

गणेश का परिवार घने जंगलों से घिरे एक गांव में रहता है लेकिन समय के साथ यह जंगल धीरे-धीरे खत्म होता जा रहा है। वृक्षों की कटाई के कारण यह जंगल विरान होता जा रहा है। ऐसी स्थिति में लोगों द्वारा पौधारोपण की उम्मीद बहुत कम नजर आती है।

12 साल के बच्चे ने बनाई 500 रु से भी कम की छननी, बिना किसी मेहनत के साफ़ कर सकते हैं अनाज! - The Better India - Hindi

अमृता खंडेराव बताती है कि जब भी इस विषय में घर में बात होती थी तो गणेश उसे बड़े ध्यान से सुनता था। गणेश का दिमाग अपनी उम्र के बाकी बच्चों से काफी आगे की सोचता है इसलिए हमेशा ही समस्याओं के बारे में वह खुद से सोच कर या फिर कहीं से पढ़कर हल ढूंढता है। गणेश ने आसपास के जंगलों को कम होता देख इसका समाधान ढूंढना शुरू किया। जब गणेश सिर्फ पहली कक्षा में थे, तब उन्होंने “सीडबॉल” के रूप में पर्यावरण संरक्षण का उपाय ढूंढा।

उन्होंने ना सिर्फ अपने स्कूल में बल्कि अपने जिले के दूसरे स्कूल में भी जाकर असेंबली में छात्रों और अध्यापकों को इस समस्या के प्रति आगाह किया और सीडबॉल के बारे में बताया। गणेश के “सीडबॉल प्रोजेक्ट” को उसके स्कूल में सराहना मिली ,साथ ही साथ राज्य स्तरीय मेलों में भी महाराष्ट्र के विभिन्न नामी-गिरामी लोगों ने उनकी सराहना की।

12 साल के बच्चे ने बनाई 500 रु से भी कम की छननी, बिना किसी मेहनत के साफ़ कर सकते हैं अनाज! - The Better India - Hindi

 

सीडबॉल के अलावा अब गणेश ने “मैजिकसॉक्स अभियान” भी शुरू कर किया है। एक बार जब गणेश अपनी मां के साथ स्ट्रौबरी फार्मिंग देखने के लिए गए थे तब उन्होंने वहां पर देखा कि किसानों ने खेत पर स्पंज बिछाकर उस पर मिट्टी डालकर स्ट्रौबरी की खेती की स्पंज की मदद से नमी ज्यादा दिनों तक बरकरार रहती है और इससे बीज का अंकुरण आसान हो जाता है। यह बात गणेश के दिमाग में रह गई और उन्होंने एक ऐसे ही छोटे से एक्सपेरिमेंट के तौर पर पुराने सॉक्स में थोड़ी सी गीली मिट्टी और दो-तीन बीज डालकर उसे गाठ बांधी। उन्होंने उस सॉक्स को अपने बगीचे के गमले में रख दिया कुछ दिनों बाद अमृता और गणेश ने देखा कि वह बीज अंकुरित होने लगे थे। गणेश ने अपनी एक्सपेरिमेंट को “मैजिक सॉक्स” का नाम दिया।

12 साल के बच्चे ने बनाई 500 रु से भी कम की छननी, बिना किसी मेहनत के साफ़ कर सकते हैं अनाज! - The Better India - Hindi

 

इस एक्सपेरिमेंट की सफलता देखते हुए गणेश ने अपने स्कूल की असेंबली में एक बार फिर प्रेजेंटेशन दी और यवतमाल के कई स्कूलों के छात्रों ने अपने घरों से फटे पुराने सॉक्स लाने को कहा। अमृता और गणेश ने सभी बच्चों के साथ मिलकर बहुत सारे मैजिक सॉक्स का निर्माण किया और आसपास के जंगलों में जाकर फेंक दिया। अमृता का कहना है कि अगर आपने कभी गौर किया हो तो इंसान के पौधारोपण से कहीं ज्यादा क्षमता प्रकृति की स्वयं पौधारोपण की है।

 

पौधारोपण के साथ-साथ गणेश अब अविष्कारक भी बन चुके हैं। साल 2017 में गणेश ने एक ऑटोमेटिक छन्नी बनाई जिसकी मदद से कोई भी अनाज बहुत ही कम समय में किसी खास मेहनत के बिना आसानी से साफ किया जा सकता है।

गणेश ने बताया कि उन्होंने अपनी मम्मी और गांव की औरतों को हाथ से अनाज साफ करते देखा। इस प्रक्रिया में समय बहुत लगता है और थकान भी काफी हो जाती है। इस समस्या पर उन्होंने कुछ करने का सोचा और फिर एक मैकेनिकल छलनी का मॉडल बनाया जिससे सैकड़ों किलो अनाज भी बहुत आसानी से चंद घंटों में साफ किया जा सकता है। सनी को इच्छुक व्यक्ति ₹500 से भी कम की लागत में बनवा सकता है। छलनी की मदद से वह 1 दिन में 20 किलो से भी ज्यादा अनाज साफ किया जा सकता हैं।

12 साल के बच्चे ने बनाई 500 रु से भी कम की छननी, बिना किसी मेहनत के साफ़ कर सकते हैं अनाज! - The Better India - Hindi

इस अविष्कार को पहले यवतमाल अमोलकचंद विश्वविद्यालय के आविष्कार मेला में प्रदर्शित किया गया जहां उन्हें इस इनोवेशन के लिए बहुत तारीफ मिली। इसके बाद गणेश के माता-पिता ने 92वे अखिल भारतीय मराठी साहित्य सम्मेलन में लगभग 40 मैकेनिकल छलनी ऐसी महिलाओं को मुफ्त में प्रदान की जिनके किसान पतियों ने आत्महत्या कर ली थी।

अमृता का कहना है कि वह गणेश को हमेशा सबको अपने साथ लेकर चलने के लिए प्रेरित करती हैं। लेकिन गणेश के पास साधन सीमित है, अगर समुदाय के लोग आगे बढ़कर मदद करेंगे तो उनका यह मानना है कि वह जरूर कुछ अच्छा कर सकते हैं।

Share This Article
Leave a comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *