भारत की स्वर सम्राज्ञी लता मंगेशकर की आवाज के सभी कायल है। ‘भारत रत्न’ लता मंगेशकर ने अपने 60 साल से ज्यादा के गायन कैरियर में 20 से अधिक भाषाओं में 30 हजार से अधिक गाने गाए है। वो स्वर कोकिला के नाम से मशहूर भारत की सबसे लोकप्रिय और सम्माननीय गायिका हैं। हिंदी के अलावा उन्होंने बंगाली, मराठी, पंजाबी, गुजराती, तमिल और मलयालम भाषाओं में भी गाने गाए हैं
इस मुकाम में पहुंचनेे वाली लता की जिंदगी हमेशा से ऐसी नहीं थी, जीवन के शुरूआती दिनों में उन्होंने अपने जीवन में काफी उतार-चढ़ाव देखें। बचपन में ही उनके सिर से पिता का साया उठ गया था और पूरे परिवार की जिम्मेदारी उनके ऊपर पर आ गई थी। आइए जानें, उनकी जिंदगी से जुड़़ी रोचक और अनकही बातें।
लता का जन्म 28 सितम्बर, 1929 को मध्य प्रदेश के इंदौर शहर में एक मध्यमवर्गीय मराठी परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम पण्डित दीनानाथ मंगेशकर और माता शेवांति था। उनके पिता संगीत और थियेटर से जुड़े हुए थे। लता के जन्म के समय उनका नाम ‘हेमा’ रखा गया था, लेकिन कुछ साल बाद अपने थिएटर के एक पात्र ‘लतिका’ के नाम पर उनके पिता ने उनका नाम ‘लता’ रखा। उन्होंने लता को 5 साल की उम्र से ही संगीत की शिक्षा देनी शुरू कर दी थी।
संगीत से अधिक लगाव के कारण लता की औपचारिक शिक्षा ठीक से नहीं हो पाई। जब वे 7 साल की थीं, तो उनका परिवार महाराष्ट्र आ गया। उन्होंने 5 साल की उम्र से ही अपने पिता के साथ एक रंगमच कलाकार के रूप में अभिनय करना शुरू कर दिया था। महाराष्ट्र आने के बाद उनके अभिनय का यह सफर जारी रहा। इसी बीच साल 1942 में उनके पिता का निधन हो गया, जब उनके पिता का निधन हुआ तब वो महज 13 साल की थीं। लता अपनी तीन बहनो मीना, आशा, उषा और एक भाई हृदयनाथ में सबसे बड़ी थी। ऐसे में परिवार में सबसे बड़ी होने के कारण परिवार की जिम्मेदारी उन पर आ गई।
जीवन के संघर्ष भरे दिन
परिवार की जिम्मेदारी कंधे पर आने पर उन्होंने एक बाल कलाकार के रूप में साल 1942 से 1948 के बीच हिन्दी और मराठी की लगभग 8 फिल्मों में काम किया। लेकिन उनको अभियन करना पसंद नहीं था और परिवार चलाने के लिए उनको अभिनय भी करना पड़ा। उन्होंने 1942 में आई फिल्म ‘पाहिली मंगलागौर’ में अभिनय भी किया। लता ने 10 फिल्मों में काम भी किया था, जिनमें ‘पाहिली मंगलागौर’, ‘बड़ी मां’ और ‘जीवन यात्रा’ प्रमुख हैं।
संगीत सफर की शुरूआत
साल 1945 में वो अपने भाई बहनो के साथ मुंबई चली गयी और उन्होंने उस्ताद अमानत अली खान से क्लासिकल गायन की शिक्षा ली। फिर साल 1946 में उन्होंने हिंदी फिल्म ‘आपकी सेवा में’ में ‘पा लागूं कर जोरी’ गाना गाया। प्रोड्यूसर सशधर मुखर्जी ने उनकी आवाज को ‘पतली आवाज’ कहकर अपनी फिल्म ‘शहीद’ में उन्हें गाने से मना कर दिया। फिर म्यूजिक डायरेक्टर गुलाम हैदर ने उन्हें फिल्म ‘मजबूर’ में ‘दिल मेरा तोड़ा, कहीं का ना छोड़ा’ गीत गाने को कहा जो काफी सराहा गया
कंपोजर और प्रोड्यूस के तौर पर भी किया काम
लता आनंदअघन के नाम से गाने भी कंपोज किया करती थीं। बंगाली भाषा में ‘तारे आमी चोखने देखिनी’ और ‘आमी नी’ गाने उन्होंने ही कंपोज किए थे। लता के कंपोज किए बंगाली गाने किशोर कुमार ने गाए थे। उन्होंने ‘रामराम पाहुने’ जैसी पांच मराठी फिल्मों के गाने भी कंपोज किए है। लता ने मराठी फिल्म ‘वडाल’, ‘झांझर’, ‘कंचन’ और हिंदी फिल्म ‘लेकिन’ को प्रोड्यूस किया है। उनको गाने के अलावा फोटो खिंचवाने का भी बहुत शौक है।