113 मिनट की इस फिल्म में है केवल एक ही एक्टर, ‘गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स’ में दर्ज है नाम

Shilpi Soni
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भारतीय सिनेमा का इतिहास काफी लंबा है। सिनेमा के इस इतिहास को स्वर्णिम करने में कई लोगों का अहम योगदान भी है। ऐसे ही एक अभिनेता थे सुनील दत्त, जिन्होंने 25 मई 2005 को इस दुनिया को अलविदा कह दिया लेकिन सिनेमा और उनके चाहने वाले कभी सुनील को भुला न पाएंगे। हिंदी सिनेमा के फ़िल्मकार और अभिनेता, सुनील दत्त को क्लासिक फिल्म ‘मदर इंडिया’ ने मशहूर किया। इस फिल्म में उन्होंने भले ही नकारात्मक भूमिका निभाई पर साथ ही खुद को एक बेहतरीन एक्टर के तौर पर स्थापित कर दिया। एक्टिंग के साथ-साथ उन्होंने डायरेक्शन में भी हाथ आज़माया और बहुत ही कम लोग जानते होंगे कि जिस फिल्म से उन्होंने बतौर डायरेक्टर डेब्यू किया, वह फिल्म ‘गिनीज़ बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकार्ड्स’ में शामिल है।

फिल्म ‘यादें’  का नाम है गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में दर्ज

सुनील दत्त की उस फिल्म का नाम ‘यादें’ था जो कि 1964 में रिलीज हुई थी। यह एक ब्लैक एंड व्हाइट फिल्म थी। फिल्म की शुरुआत में ही देखने को मिलता है कि यह वर्ल्ड फर्स्ट वन एक्टर मूवी है। इस फिल्म में सुनील दत्त का किरदार घर आता है और देखता है कि उसकी पत्नी और बच्चे घर पर नहीं है। उस आदमी को लगता है कि उसका परिवार उसको छोड़ कर चला गया है। इसके बाद जब वो अकेला हो जाता है तो वो आस-पास की चीजों और खुद से बातें करने लगता है इस तरह कहानी की शुरूआत होती है।
आपको बता दें सुनील दत्त ने इस फिल्म को डायरेक्ट करने के साथ-साथ इस फिल्म को प्रोड्यूस भी किया और इसमें अभिनय भी किया। यानी इस फिल्म में केवल एक ही कलाकार था और वह थे- सुनील दत्त साहब। अक्सर जब भी कोई फिल्म की कहानी लिखी जाती है, तो उसमें कई कलाकारों को लिया जाता है। कहानी में किरदारों को फिट किया जाता है। आजकल जब मल्टी-स्टारर फिल्मों का दौर चल रहा है, 60 के दशक में सुनील दत्त ने फिल्म ‘यादें’ के जरिए इतना शानदार एक्सपेरिमेंट किया कि इस फिल्म को न केवल राष्ट्रीय मंच पर सम्मान मिला, बल्कि इसने वर्ल्ड रिकॉर्ड भी अपने नाम कर डाला।
लगभग 2 घंटे की फिल्म में दत्त पर्दे पर अकेले ही नज़र आते हैं। वे खुद ही खुद से बातें करते हैं, गुस्सा करते हैं, चिल्लाते हैं, तोड़-फोड़ करते हैं और फिर रोते हैं। दत्त ने इस फिल्म में म्यूजिक, साउंड इफेक्ट्स, वॉयसओवर, कार्टून्स, कैरीकेचर, शैडो आदि का बहुत ही उम्दा तरीके से इस्तेमाल किया किया है। इन सभी चीज़ों ने इस फिल्म का आर्टिस्टिक स्तर काफ़ी बढ़ा दिया था।
अगर आर्ट के स्तर पर देखें, तो बेशक यह फिल्म अपने समय से बहुत आगे थी। एक फ़िल्मकार, निर्देशक और अभिनेता के रूप में दत्त की प्रतिभा को पूरी दुनिया के सामने एक मुक़ाम दिया। उन्होंने इस फिल्म को बनाने में बहुत बड़ा रिस्क लिया था, और क्रिटिक्स के मुताबिक दत्त की कोशिश बेकार नहीं गयी। बल्कि इस फिल्म ने हिंदी सिनेमा में एक्सपेरिमेंट फिल्मों के लिए नए दरवाज़े खोले।
यह फिल्म दर्शकों के बीच ज़्यादा नहीं चली, लेकिन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इसे ख़ूब सराहना मिली। इस फिल्म को साल 1967 में बर्लिन इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में दिखाया गया।
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