यदि आपने ‘The kashmir Files’ अब तक नहीं देखी ,तो ये रिव्यू है सिर्फ आपके लिए

Deepak Pandey
6 Min Read

‘द कश्मीर फाइल्स’ में एक डायलॉग है जिसका लब्बोलुआब ये है कि कश्मीर सिर्फ एक स्टेट नहीं है, पूरी पॉलिटिक्स है। इस पॉलिटिक्स में बहुत सारी फ़िल्में बहुत अलग-अलग खिड़कियों से झांकती रही हैं, लेकिन एक खिड़की जो कम ही खुली है वो है कश्मीरी पंडित .90 के दशक की शुरुआत में कश्मीरी पंडितों का वहां से पलायन एक ऐसी घटना रहा, जो कितना भयानक था, इसकी सबसे ज्यादा जानकारी, उन लोगों की कहानियों से पता चलती है जिन्होंने इसे भोगा। और इसे पूरे खून-खराबे और खौफ के साथ दिखाने में विवेक अग्निहोत्री की फिल्म ज़रा भी नहीं हिचकिचाती। 90s की शुरुआत में कश्मीरी पंडितों पर जो कुछ बीता उसने कभी हमेशा इंडिया की पॉलिटिक्स पर अपनी गर्मी बनाए रखी और मौजूदा समय में एक बहुत बड़ा पॉलिटिकल नैरेटिव है। और इस नैरेटिव में विवेक अग्निहोत्री अपने नज़रिए, अपना मैसेज देने में संकोच नहीं करते। चाहे लाइन से खड़ा कर के गोली मारने की घटनाएं हों या फिर एक महिला को आरे से चीर देने की।Off-centre | The Kashmir Files: A story of India that the world needs to see

फिल्म ख़त्म होने के बाद थिएटर से बाहर आने के बाद आपके दिमाग में वो घटनाएं एक सन्नाटा सा किए रहती हैं, जो लगातार चुभता रहता है। पॉलिटिक्स में हर किसी का अपना एक पक्ष होता है और विवेक ने कश्मीर और कश्मीरी पंडितो को लेकर अपना पक्ष बेधड़क होकर इस फिल्म में रखा है।The Kashmir Files: A film that dares to fly against the set secular, illiberal narrative

जानिए फिल्म की क्या है जान ?

कहानी शुरू होती है पुष्कर नाथ पंडित (अनुपम खेर) से जिसका परिवार कश्मीरी पंडितों के साथ हुई हिंसा का शिकार बनता है। पुष्कर के जवान पोते कृष्णा पंडित के रोल में हैं दर्शन कुमार। पुष्कर और कृष्णा के अपने-अपने सफ़र के ज़रिए ‘द कश्मीर फाइल्स’ उन घटनाओं और उस दौर के धागे खींचती चलती है.90s के उस खौफनाक दौर की कहानी के साथ-साथ बराबर में एक और ट्रैक चलता रहता है जो हमारे इस मौजूदा वक़्त का खाका है। दोनों ही दौर की कहानियां अंत में पहुंचते-पहुंचते अपना विलेन खोज लेती हैं। और उस विलेन की तरफ उंगली उठाने में ‘द कश्मीर फाइल्स’ बिलकुल भी नहीं झिझकती।

The Kashmir Files Movie Review: An impactful watch with so much sense
कश्मीरी पंडितों का पलायन इतिहास में मौजूद एक घटना है जिसके कई अलग-अलग वर्ज़न हैं। और ‘द कश्मीर फाइल्स’ के वर्ज़न में मिथुन चक्रवर्ती एक आईएएस ऑफिसर हैं जो बार-बार ये दोहराता रहता है कि 30 साल पहले जो हुआ पलायन नहीं नरसंहार था। इस नरसंहार में पुष्कर नाथ पंडित का परिवार, डायरेक्टर-राइटर विवेक अग्निहोत्री के हिसाब से, सोची-समझी साजिश के तहत की गई लिंचिंग का शिकार होता है। जान बचाने के लिए चावल की देहरी में छुपे पुष्कर के बेटे को मार दिया जाता है, और आत्मा हिला देने वाले एक सीन में उसकी बीवी शारदा पंडित (भाषा सुम्बली) को, उसके खून में डूबे चावल खिलाए जाते हैं। 30 साल बाद शारदा का बेटा एक यूनिवर्सिटी इलेक्शन लड़ने जा रहा है जिसके नतीजों का फैसला कश्मीर पर पॉलिटिक्स से होना है।

The Kashmir Files Trailer Review: Vivek Agnihotri With Anupam Kher, Mithun Chakraborty Resurrect The Bone-Chilling Moments From Kashmiri Pandits' Exodus
वो एक ऐसा लड़का है जो पॉलिटिक्स में अपना पक्ष चुन लेने में यकीन नहीं करता और उसे अपने परिवार के साथ हुए इस वहशीपने की कोई जानकारी ही नहीं है। उसके ज़रिए फिल्म हिन्दू-मुस्लिम राजीति की खाई को इस तरह दिखाती है जैसा पहले किसी फिल्म ने नहीं दिखाया होगा शायद। लेकिन दिक्कत ये है कि ये फिल्म एक तरफ ज्यादा झुक जाती है।कश्मीरी पंडितों के अतीत में, इंसानियत से विश्वास उठवा देने वाला जो दौर गुजरा, उसके सहारे फिल्म मौजूदा राजनीति की कई विवादित घटनाओं को एक तरफ़ा तरीके से दिखाने लगती है। ‘द कश्मीर फाइल्स’ में ये एक जिद दिखी कि जिस विचार को फिल्म प्रमुखता से दिखाती है, उससे रत्ती भर भी मेल न खाने वाले विचार को खलनायक बना देती है। और इस मामले में वो न स्टूडेंट्स को बख्शती है, न प्रोफेसर्स को और न नेताओं को।

The Kashmir Files Movie Review By A Kashmiri Pandit: The Truth Is So True, It Almost Feels Like A Lie!
अलग बोलने वालों को सीधा देशद्रोही, और कश्मीरी पंडितों के साथ अन्याय करने वालों के साथ जुड़ा बता देने की एक जल्दी भी फिल्म में है। लेकिन अनुपम खेर का किरदार हर बार आपको ये भरोसा दिलाता रहता है कि ये सोच हमारी प्रतिहिंसा नहीं, हमारा दर्द है। स्क्रीन पर फुल क्लोज़-अप में हों या फिर किनारे खड़े किसी घटना को देखते हुए, अनुपम का हरेक सीन ही नहीं बल्कि हरेक फ्रेम, एक्टिंग में उनकी मास्टरी का आईना है। उनके किरदार पुष्कर की मदद न कर पाने का गिल्ट लेकर जी रहे उनके साथियों के रोल में मिथुन, पुनीत इस्सर, प्रकाश बेलावाड़ी, अतुल श्रीवास्तव और मृणाल कुलकर्णी ने भी सपोर्टिंग रोल्स में बहुत शानदार काम किया है। फिल्म के लास्ट एक्ट में दर्शन भरपूर चमकते हैं। फ़्लैशबैक में कहानी के विलेन बने चिन्मय मंडलेकर और प्रेजेंट में नेगेटिव किरदार में नज़र आईं पल्लवी जोशी भरपूर डिस्टर्बिंग हैं। ‘द कश्मीर फाइल्स’ को उसकी ऑडियंस पता है और अगर आप उनमें से हैं तो भी ये फिल्म देखते हुए आपको कलेजा मज़बूत रखना पड़ेगा।

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