अभी हाल ही में 24 मंजिला सुपरटेक के टावर को धराशाई कर दिया. सुपरटेक की बनाई भ्रष्टाचार की गगनचुंबी इमारत को आखिरकार ढहा दिया गया, लेकिन सवाल ये उठता है कि आखिर सैकड़ों मकान खरीदारों के सपनों को चकनाचूर करने की नौबत आई ही क्यों और इससे किसको कितना नुकसान हुआ है इसका अंदाजा लगाना बहुत मुश्किल है. आइए जानते हैं कौन है जिम्मेदार इसके?
नई दिल्ली में स्थित नोएडा के सेक्टर 93-ए के ट्वीन टॉवर को आखिरकार लंबी कानूनी लड़ाई के बाद गिरा दिया गया. इसे मकान खरीदारों की जीत और बिल्डर की हार के तौर पर देखा जा रहा है, लेकिन इस पूरे मामले से मकान खरीदारों को क्या सीख लेनी चाहिए और क्यों यह बिल्डिंग गिराने की नौबत आई. और इससे किसको कितना नुकसान हुआ है.
हम आपको बता दें कि इस बिल्डिंग की नींव ही भ्रष्टाचार पर रखी गई थी और प्राधिकरण के अधिकारियों की मिली भगत से बिल्डर ने नियमों को ताक पर रखकर टॉवर का निर्माण किया किया था. बिल्डर करीब 915 फ्लैट बनाए थे, जिसमें से 711 फ्लैट लोगों ने बुक भी करा लिए थे. हालांकि, असल समस्या इसके बाद आई और कुछ मकान खरीदारों ने बिल्डिंग के अवैध निर्माण को लेकर कोर्ट में केस दायर कर दिया.
इस 24 मंजिला ट्वीन टॉवर को गिराने की शुरुआत साल 2005 में सुपरटेक को एमरॉल्ड सोसाइटी बनाने की मंजूरी दी थी. शुरुआत में इसमें ग्राउंड फ्लोर के अलावा 9 मंजिला बनाने की इजाजत थी, जिसे साल 2006 में बदलाव कर 11 मंजिला कर दिया गया. बिल्डर ने अधिकारियों से मिलीभगत कर साल 2009 में इसकी ऊंचाई बढ़ाकर 24 मंजिला कर दिया और इतने से भी मन नहीं भरा तो 2012 में 40 मंजिला इमारत बनाने का नक्शा पास करा लिया. बिल्डर की इस मनमानी से नाराज मकान खरीदारों ने इसके खिलाफ आवाज उठाई.
अब यहां खेल यह हुआ है कि जिन खरीदारों को कम कीमत वाली प्रॉपर्टी के एवज में ज्यादा कीमत वाली प्रॉपटी मिलती है, उनसे तो बकाया पैसा वसूल लिया जाता है. लेकिन, जिन ग्राहकों को ज्यादा कीमत वाली प्रॉपर्टी के बदले कम कीमत वाली प्रॉपर्टी मिलती है, उन्हें शेष पैसा वापस नहीं किया जाता है. इसके अलावा इन मकान खरीदरों के समय का नुकसान हुआ सो अलग. जानकारी के मुताबिक, 59 ग्राहकों को अभी तक रिफंड नहीं मिला है.