Cricket News: क्रिकेट की दुनिया में भालाजी डामोर का नाम का के कम लोग जानते हैं. इन्होने भारतीय क्रिकेट टीम के लिए इंटरनेशनल क्रिकेट खेला है लेकिन इन्हें सहवाग, सचिन और धोनी कितने प्रसिद्ध नहीं मिली. भालाजी डामोर ने अकेले अपने दम पर भारत को 1998 के ब्लाइंड वर्ल्ड कप में सेमीफाइनल तक पहुंचाया था. लेकिन अब इनकी जिंदगी बिल्कुल बदल चुकी है. अब वह गांव में भेड़ बकरियां चराते हैं. क्रिकेट में शानदार रिकॉर्ड रखने वाले भालाजी छोटा-मोटा काम करके अपनी जिंदगी गुजार रहे हैं. भारत के लिए 125 मैचों में 3125 रन बनाए और 150 विकेट अपने नाम किए हैं.
राष्ट्रपति भी कर चुके हैं तारीफ
इनका जन्म रावली जिले के पिपराणा गांव में हुआ था. वह अपनी कैटेगरी में सबसे ज्यादा विकेट लेने वाले गेंदबाज थे. जब भालाजी ने 1996 के ब्लाइंड वर्ल्ड कप में भारत की तरफ से सेमीफाइनल मुकाबले में साउथ अफ्रीका के खिलाफ शानदार प्रदर्शन किया था तो तत्कालीन राष्ट्रपति के आर नारायणन ने इनकी तारीफ की थी. जिस खेल में सामान्य दृष्टि वाले क्रिकेटरों को विकेट लेने पर तारीफ मिलती हैं. वही भालाजी डामोर नेत्रहीन होने के बाद भी बल्लेबाजों को आसानी से आउट कर देते थे.
गांव में करते है खेती
भालाजी डामोर अपने गांव के खेत में एक बीघा जमीन की खेती भी करते हैं जिसमें उनके भाई की भी बराबर की हिस्सेदारी है. लेकिन इस खेत से कोई ज्यादा आमदनी नहीं होती. उनकी पत्नी भी गांव के लोगों के खेतों में काम करती है और इनके एक बेटा सतीश की दृष्टि सामान्य है. वह टूटे-फूटे घर में रहते हैं, जिसमें क्रिकेट से मिले उनके कई प्रमाण पत्र बड़े सलीके से रखे हुए हैं.
भले ही इन्होने क्रिकेट के मैदान में काफी वाहवाही लूटी हो लेकिन सामान्य जिंदगी में वह खाने के लिए भी तरस रहे हैं. उन्होंने बताया कि विश्वकप खेलने के बाद उन्होंने खेल कोटे से कई जगह नौकरी की तलाश की लेकिन उन्हें कोई सफलता हाथ नहीं लगी.
इसके अलावा भालाजी डोमर नजदीक के एक स्कूल में ब्लाइंड छात्रों को क्रिकेट सिखाने जाते हैं. अगर उनके पूरे घर की कमाई जोड़ ली जाए तो भी 3000 रूपए प्रति महीना ही हो पाती है. यह राशि तो उनको 1998 में वर्ल्ड कप के दौरान पुरस्कार में मिली 5000 रूपए की राशि से भी कम है. वह बचपन में भी बकरियां चराई करते थे. लेकिन क्रिकेट के प्रति ललक देखकर लोगों ने उन्हें स्थानीय क्रिकेट टूर्नामेंट खेलने के लिए कहा. लेकिन क्रिकेट में बड़ा नाम कमाने के बाद भी उन्हें अब अपना गुजारा करने के लिए पहले वाला काम ही करना पड़ रहा है.