आजादी से पहले ट्रेन में AC कोच के ये तकनीकी अपनाई जाती थी, कुछ यूं दी जाती थी बर्फ की सिल्लियों से ठंडी हवा

Mukesh Saraswat
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जैसा कि आप इससे वाकिफ होंगे कि भारतीय रेल दुनिया का चौथा सबसे बड़ा रेलवे सिस्टम माना जाता है।वही समय के साथ ट्रेन में भी काफी सुधार हुआ है।मौजूदा समय में ट्रेनों में कई तरह की बोगियां होती है। जिनमें जनरल, स्लीपर, थर्ड क्लास ,सेकंड क्लास और फर्स्ट क्लास जैसे डिब्बे है। अगर आप भारत में ट्रेनों के इतिहास की जानकारी रखने का शौक रखते है तो कभी न कभी आपके जेहन में एक प्रश्न जरूर आया होगा कि देश में कि कौन सी ट्रेन रही होगी, जिसमें सबसे पहले एसी बोगी का इस्तेमाल किया गया था। और इसकी शुरुआत कैसे की गई थी।

94 साल पहले इसकी की गई थी शुरुआत

आपको बता दें कि देश की पहली एसी ट्रेन का नाम फ्रंटियर मेल है।इस ट्रेन ने अपना पहला सफर आज से तकरीबन 94 साल पहले 1 सितंबर 1928 को शुरू किया था।इससे पहले इस ट्रेन को लोग पंजाब एक्सप्रेस के नाम से जानते थे, लेकिन जब 1934 में इसमें AC कोच को जोड़ा गया तो इसी दौरान इसका नाम बदलकर फ्रंटियर मेल रख दिया गया। उस समय की ये बेहद खास ट्रेन थी क्योंकि उस दौर में ये मौजूदा समय की ट्रेनों राजधानी के जैसे खास महत्व रखती थी।

कूलिंग के लिए बर्फ की सिल्लियों का इस्तेमाल होता था

इस ट्रेन से जुड़ी खास बातों का जिक्र करें तो फ्रंटियर मेल के AC ट्रेन को ठंडा रखने के लिए पहले के जमाने में अत्याधुनिक उपकरणों का इस्तेमाल नहीं किया जाता था बल्कि वो खास तरह की तकनीकी का इस्तेमाल करते थे। जानकारी के मुताबिक उस दौरान ट्रेन को ठंडा करने के लिए बर्फ की सिल्लियो बकायदा इस्तेमाल किया जाता था। एसी बोगी में कूलिंग प्रदान करने के लिए बोगीं के नीचे बॉक्स रखा जाता था।वही बॉक्स में बर्फ रखकर पंखा लगाया जाता था। इस पंखे से यात्रियों को लगातार रूप से ठंडक मिलती है।

क्रांतिकारियों के अलावा महात्मा गांधी कर चुके थे इसमें सफर

ये ट्रेन मुंबई से अफगान बॉर्डर, पेशावर तक ही चलाई जाती थी। उस दौरान इस ट्रेन में अंग्रेज अफसरों के अलावा स्वतंत्रता सेनानी भी इस पर ट्रैवल किया करते थे।ट्रेन दिल्ली, पंजाब और लाहौर से होते हुए पेशावर तक का सफर कर करती थी। फ्रंटियर मेल 72 घंटे में ये पूरा सफर तय करती थी ।वही पिघले हुए बर्फ को अलग-अलग स्टेशनों पर निकाल कर दोबारा से भरा जाता था। उस जमाने में ये ट्रेन खास महत्व रखती थी इस ट्रेन में सुभाष चंद्र बोस और भारत के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने भी ट्रैवल किया।

बाद में इसका नाम बदलकर गोल्डन टेम्पल मेल रखा गया

इस ट्रेन की एक और खासियत के बारे में शायद आप नहीं जानते होगे।ये ट्रेन कभी भी अपने नियत समय से लेट नहीं होती थी। 1934 में शुरू होने के 11 महीने बाद जब ट्रेन लेट हुई थी तो उस दौरान सरकार ने इस पर सख्त कार्रवाई करते हुए ड्राइवर को नोटिस भेजकर इसका जवाब तलब किया था। 1930- 40 के मध्य तक संचालित होने वाली। इस खास ट्रेन में महज 6 बोगियां होती थी और करीब 450 लोग इसमें सफर कर सकते थे।

जो लोग फर्स्ट और सेकंड क्लास में यात्रा करते थे, उन्हें खाना भी दिया जाता था। अतिरिक्त सुविधा के तौर पर उन्हें न्यूज़पेपर ,बुक्स और ताश के पत्ते मनोरंजन के लिए दिए जाते थे।आजादी के बाद ये ट्रेन मुंबई से अमृतसर तक सीमित तौर पर चलाई जाने लगी।1996 में इसी ट्रेन का नाम बदलकर’ गोल्डन टेंपल मेल’ रख दिया गया था।

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