2 साल में 5 शहरों में चलेगी स्काई बस:इनमें वाराणसी और गुरुग्राम शामिल; साल के अंत तक गोवा के मडगांव में होगा ट्रायल रन सड़क परिवहन मंत्रालय वाराणसी, पुणे, हैदराबाद, गुरुग्राम और गोवा में स्काई बस चलाने की तैयारी कर रहा है। शहरी ट्रांसपोर्ट में अगले दो साल में स्काई बस शामिल होने जा रही है।
2004 में हुआ था ट्रायल, हादसे के बाद बंद
भारत में स्काई बस के जनक कोंकण रेलवे के निदेशक रहे बी. राजाराम हैं। उन्होंने 2004 में गोवा के मडगांव में 1.6 किमी का ट्रायल ट्रैक बनाया था। हालांकि ट्रायल के दौरान एक हादसा हो गया, जिसमें इंजीनियर की मौत होने के बाद इस प्रोजेक्ट को रोक दिया गया था।
2016 में ट्रैक से हटा लिए गए थे पिलर
इस रूट की प्लानिंग पहले ही तैयार कर ली गई थी। लेकिन बाद में ट्रैक और पिलर 2016 में हटा लिए गए थे। उस समय ये प्रोजेक्ट रेलवे के अंडर था। लेकिन अब नितिन गडकरी के मंत्रालय सड़क परिवहन को इसकी जिम्मेदारी मिली है। ट्रांसपोर्ट के रोड ट्राम मोड में स्काई बस रहेगी। स्काई बस के लिए जमीन अधिग्रहण का काम किया जाना है। इसके रूट को बनाने के लिए सड़कों के बीच डिवाइडर खड़े करने होंगे। पिलर तैयार होने के बाद सेवा शुरू होगी।
पटरियां खुद हो जाती हैं शिफ्ट
खुद इस प्रक्रिया के दौरान पटरी अपने आप शिफ्ट हो जाती है। टेक्निकल लैंग्वेज में इस ट्रावर्सर कहा जाता है। बी राजाराम को भारत में स्काई बस का जनक माना जाता है। जो कोंकण रेलवे के डायरेक्टर रहे हैं। 2004 में उन्होंने ही गोवा के मडगांव में ट्रैक बनाया था। जिसकी लंबाई 1.6 किलोमीटर थी। लेकिन इसके ट्रायल के दौरान एक्सीडेंट में एक इंजीनियर की डेथ हो गई थी। जिसके बाद प्रोजेक्ट को रोकने का फैसला लिया गया था।
मेट्रो के मुकाबले 50% सस्ती, एक बोगी में 300 यात्री
स्काई बस में ट्रैक (पटरियां) पिलर पर बनाए जाते हैं। इसमें तीन बोगी जुड़ सकती हैं। बोगी के ऊपर पहिए होते हैं, जो हुक के जरिए पटरियों पर रखे जाते हैं। बोगी पटरियों से नीचे होती हैं। स्काई बस 100 किमी/घंटे की गति से चल सकती है। इसका मेंटेनेंस खर्च भी कम है।
स्काई बस की एक बोगी में 300 लोग बैठ सकते हैं। मेट्रो के मुकाबले इसका परिवहन 50% सस्ता होता है। इसमें एक ट्रेन को अप से डाउन लाइन पर लाने के लिए अतिरिक्त पटरी नहीं बिछानी पड़ती है। जिस स्टेशन के अप लाइन से इसे डाउन लाइन में लाना होता है वहां पूरी पटरी शिफ्ट होकर दूसरी तरफ चली जाती है। तकनीकी भाषा में इसे ट्रावर्सर कहते हैं।