हिमाचल प्रदेश के पहाड़ी क्षेत्र में एक प्रयोगशील किसान ने कुछ इसी तरह अपने आप को साबित किया है। बेमौसमी सब्जियों का उत्पादन करके अपनी आर्थिकी को सुदृढ़ करने के साथ-साथ लोगों के लिए प्रेरणा स्रोत बन गए हैं। चंबा जिले के संजीव कुमार नामक यह प्रगतिशील किसान अगस्त और सितंबर में मटर और फ़्रांसबीन जैसी सब्जियां उगाकर सिर्फ 3 बीघे जमीन से 5 लाख रुपए सालाना की बचत कर रहे हैं।
बेमौसमी सब्जियों का उत्पादन करके अपनी आर्थिकी को सुदृढ़ करने के साथ-साथ लोगों के लिए प्रेरणा स्रोत बन गए हैं। चंबा जिले के संजीव कुमार नामक यह प्रगतिशील किसान अगस्त और सितंबर में मटर और फ़्रांसबीन जैसी सब्जियां उगाकर सिर्फ 3 बीघे जमीन से 5 लाख रुपए सालाना की बचत कर रहे हैं। मटर, टमाटर और फ्रासबीन बेमौसमी व मुख्य नकदी फसलें हैं। बेमौसमी सब्जियों में जिला चंबा से लगभग 32 हजार किवंटल मटी, 75 सौ क्विंटल फ्रांसबीन, 44 सौ क्विंटल टमाटर, 34 सौ क्विंटल फूल गोभी व बंद गोभी का विपणन प्रदेश के दूसरे जिलों व पड़ोसी राज्यों को किया जाता है।
बेमौसमी सब्जियों के उत्पादन के कई फायदे हैं?
- ऊंची कीमतें: ऑफ-सीजन सब्जियां अक्सर अधिक मांग में होती हैं और ऊंची कीमतें प्राप्त कर सकती हैं, जो किसानों के लिए फायदेमंद हो सकती हैं और स्थानीय अर्थव्यवस्था को समर्थन देने में मदद कर सकती हैं।
- आयात में कमी: स्थानीय स्तर पर बे-मौसमी सब्जियों का उत्पादन करने से अन्य क्षेत्रों या देशों से उपज आयात करने की आवश्यकता को कम करने में मदद मिल सकती है, जिससे परिवहन से जुड़े कार्बन पदचिह्न को कम करके पर्यावरणीय लाभ हो सकता है।
- रोजगार सृजन : ऑफ-सीजन सब्जी उत्पादन स्थानीय किसानों, श्रमिकों और परिवहन, पैकेजिंग और विपणन जैसे संबंधित उद्योगों के लिए रोजगार के अवसर पैदा कर सकता है।
- फसल चक्र: बे-मौसमी सब्जियां उगाना फसल चक्र के लिए फायदेमंद हो सकता है, जो मिट्टी की उर्वरता बनाए रखने, मिट्टी के कटाव को कम करने और कीटों और बीमारियों के निर्माण को रोकने में मदद कर सकता है।
- बेहतर खाद्य सुरक्षा: बे-मौसमी सब्जियों का उत्पादन ताजा उपज की लगातार आपूर्ति प्रदान करके खाद्य सुरक्षा में सुधार करने में मदद कर सकता है, खासकर उन क्षेत्रों में जहां ताजे फल और सब्जियों तक पहुंच सीमित हो सकती है।