शादी के 10 महीने बाद ही हो गए थे जुदा, 72 साल बाद मिले और ऐसी रही मुलाकात

Mukesh Saraswat
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सच्चे प्यार की कहानियां तो आपने बहुत सुनी होंगी लेकिन क्या अपने कभी सच्चे प्यार को देखा है? अगर नही तो आज हम आपको उसी सच्चे प्यार की ओर ले चलते है।

शादी एक मामूली शब्द है लेकिन उससे जुड़ने वाला बंधन उमर भर तक साथ निभाता है। चाहे आप दूर हो या पास शादी हमेशा एक यादगार पल होता है। और इस ही कुछ हुआ केरल के नारायणन नम्बीआर और उनकी पहली पत्नी शारदा के साथ।

केरल के कुन्नूर में आजादी की लड़ाई के दौरान जुदा होने की कहानी है नारायणन नम्बीआर और शारदा की, जो 2018 में 72 सालों के बाद मिले। नारायण नम्बीआर और शारदा की शादी 1946 में हुई थी, उस दौर में जब आजादी की लड़ाई पूरे देश में फैली हुई थी।

कन्नूर में किसानों का ‘कावुम्बई किसान विद्रोह’ चल रह था। उस समय नम्बीआर की आयु 18 वर्ष थी और शारदा की आयु केवल 13 वर्ष थी। दोनों की शादी को सिरे 10 महीने ही हुए थे कि दिसम्बर 30 को नम्बीआर को इस किसान विद्रोह के लिए जाना पड़ा।

नम्बीआर, उनके पिता और गाँव के अन्य सभी किसानों ने वहाँ के जमीनदार करकट्टम नरयोनर के घर के बाहर प्रदर्शन करना शुरू कर दिया। वो लोग रात होते ही जमींदार के घर पर हमला करने वाले थे। पर अंग्रेज सरकार ने उनके इरादों पर पानी फेर दिया और ‘मालाबार इस्पेशल पुलिस’ को कावुम्बई किसान संगठन के लोगों के घेराव के लिए भेज दिया।

और इसी दौरान मालाबार इस्पेशल पुलिस और किसानों के बीच घमासान में पांच विद्रोहियों ने अपनी जान गवा दी और कई घायल भी हुए थे। नम्बीआर और उसके पिता किसी तरह उस स्थिति से भागने में सफल हुए और किसी सुरक्षित जगह जाकर छुप गए। इसके बाद एम एस पी ने गाँव के घरों में घुसकर बाकी लोगों को तलाशना शुरू कर दिया और शारदा सहित अन्य घरों की स्त्रियों को धमकाया और डराया।

इसके बाद पुलिस ने नम्बिआर और उसके पिता को गिरफ्तार कर लिया और जेल भेज दिया। बहुत समय गुजरने के बाद भी नम्बीआर की कोई खबर नहीं आई। लेकिन कुछ वर्षो बाद खबर फैली की कन्नूर से पकड़े गाए विद्रोहियों को गोली मारकर हत्या कर दी गई हैं।

लेकिन असल में ये खबर सच्ची नहीं थी, इसे एक अफवाह के रूप में फैलाया गया था जिसकी शिकार शारदा हो गई। लेकिन शारदा और नम्बीआर की किस्मत में शायद जुदाई ही लिखी थी लेकिन शायद वर्षो बार आकस्मिक मिलना भी लिखा था।

एक घटना के बाद एक शारदा और नम्बीआर, दोनो का दूसरा विवाह हो गया। पर 72 वर्षो बाद उनकी भतीजी संथा और उसके भाई ने दोनों को पुनः मिलाने का प्रयास किया। संथा एक लेखिका है, और उनका उपन्यास ’30 दिसम्बर’ युहीं हालात के चलते बिछड़े जोड़े की कहानी है। संथा और उनके भाई ने शारदा के बेटे भारघवन से बातचीत की और शारदा और नारायणन को वापिस मिलने का तय किया।

कुछ दिनों की बातचीत के बाद आखिरकार 26 दिसंबर 2018 को शारदा के घर 72 साल पहले बिछड़े हुए नम्बीआर पहुंचे। शारदा और नारायणन के परिवार के मुताबिक यह एक बहुत भावुक मिलन था। नारायणन ने जिस प्रकार शारदा के सिर पर हाथ फेरा वो देख कर किसी की भी आखें भर आएंगी। और सिर पर वो हाथ फेरना आज भी बता रहा था की इतने वर्षो के मिलन के बाद भी दोनो में आज भी प्यार जिंदा है।

मिलना और बिछड़ना तो ऊपर वाले की रीत है, मगर जिनका प्यार सच्चा होता और जिनकी किस्मत में मिलना लिखा होता है वो एक न एक दिन किसी भी तरह मिल जाते है। शारदा और नारायणन नम्बीआर का रिश्ता खुद में एक मिशाल है।

 

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Mukesh Saraswat is Editor and Chief in Bwood tadka .He has total experience of 5 years in Mass Communication Media.
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