हमने स्कूल-कॉलेज के दिनों में किताबें तो पढ़ीं लेकिन हमने कभी ये नहीं जानना चाहा कि इन किताबों को लिखने वाला शख्स कौन है? हम आज एक ऐसे ही शख्स के बारे में आप सबको बताने जा रहे हैं जिसका नाम तो हर छात्र ने सुना होगा लेकिन उनके बारे में जानकारी बहुत कम लोगों को होगी.हम यहां बात कर रहे हैं माथेमैटिशन आर. डी. शर्मा की. वही आरडी शर्मा जिनकी लिखी गणित की किताबों ने ऐसे बहुत से बच्चों की नैया पार लगाई, जिनका हमेशा से गणित के साथ 36 का आंकड़ा रहा है.
एक किसान का बेटा जो मैथ्स का हीरो बना
आरडी शर्मा के नाम को भले ही बहुत लोग जानते हों लेकिन इनके बारे में जानकारी रखने वाले बहुत कम हैं. और तो और बहुत से लोग तो इनका पूरा नाम तक नहीं जानते. कई जगहों पर आपको इनका पूरा नाम राम दास शर्मा लिखा मिलेगा जबकि इनका असल और पूरा नाम है रवि दत्त शर्मा. आरडी शर्मा का जन्म राजस्थान के बहरोड़ तहसील के एक छोटे से गांव भूपखेरा में हुआ था. इनके पिता एक सामान्य किसान थे. 31 सालों से बोर्ड और प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले छात्रों के लिए गणित के आसान सूत्र तैयार करने वाले आरडी शर्मा का बचपन बहुत से अभावों में बीता. शर्मा अपने गांव से 15 किमी दूर स्थित स्कूल में पैदल पढ़ने जाया करते थे. पढ़ने के लिए इतनी दूर पैदल जाने का सिलसिला तब तक चलता रहा जब तक इनके पिता ने पैसे जमा कर के इनके लिए एक साइकिल नहीं खरीद दी.
पिता की वजह बढ़ी गणित में रुचि
आज यदि आरडी शर्मा का नाम गणित के बड़े जानकारों में लिया जाता है तो इसका श्रेय इनके पिता जी को जाता है. इनके पिता कभी स्कूल नहीं गए थे लेकिन उन्होंने अपने बेटे के मन में गणित जैसे कठिन विषय के प्रति बचपन में ही दिलचस्पी जगा दी थी. रात को जब आरडी शर्मा अपने पिता के साथ चारपाई पर लेटते तो इन्हें तब तक सोने की इजाजत नहीं मिलती जब तक ये 40 तक का पहाड़ा नहीं सुना देते. इसी आदत के कारण शर्मा 9 साल की उम्र तक ना केवल 40 तक के पहाड़े सीख गए बल्कि इन्होंने 20 तक की संख्याओं के वर्गमूल और घनमूल भी ज्ञात कर लिए.
ऐसे में ये बताना आश्चर्य की बात नहीं होगी कि शर्मा अपनी कक्षा में प्रथम आया करते थे. इनका गांव दिल्ली से 150 किमी की दूरी पर स्थित था. टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक शर्मा बताते हैं कि उन्हें अच्छे से याद है जब उनकी ग्रेजुएशन की पढ़ाई के लिए उनके पिता ने उधार पैसे लेने पड़े थे. अपने छात्र जीवन में डॉ शर्मा को तमाम कमियों का सामना करना पड़ा, इनके पिता को इनकी पढ़ाई के लिए कर्ज लेना पड़ा लेकिन डॉ शर्मा ने भी पढ़ाई में अपना शत प्रतिशत योगदान दे कर अपने पिता के बलिदानों का खूब मूल्य चुकाया.
सोचा नहीं था कि लिख देंगे 25 किताबें
आरडी शर्मा 25 किताबों के लेखक हैं. हां लेकिन ये ऐसे लेखक नहीं जिनकी किताबें आपको साहित्य महोत्सवों के स्टाल पर लगी हुई मिल जाएं. इनकी किताबें साहित्यिक ना सही लेकिन बेस्ट सेलर जरूर हैं. असल में इनके लेखक बनने की कहानी भी बहुत अलग है. आरडी शर्मा ने कभी सोचा नहीं था कि वह किताबें लिखेंगे लेकिन इनके सामने कुछ ऐसी परिस्थितियां आन खड़ी हुईं कि इन्हें किताब लिखनी पड़ी और इसके बाद एक एक कर के इन्होंने 25 किताबें लिख दीं. उन दिनों शर्मा राजस्थान यूनिवर्सिटी से अपनी पीएचडी पूरी कर रहे थे जब इनके एक अध्यापक जो इन्हें लाइनर अलजेब्रा पढ़ाते थे उनका निधन हो गया. उस अध्यापक के निधन के बाद सबसे बड़ी समस्या ये आई कि इस विषय पर उनके द्वारा उपलब्ध करवाए जाने वाले सटीक नोट्स और किसी भी भारतीय किताब में नहीं थे. हालांकि इस विषय से संबंधित एक विदेशी लेखक की किताब जरूर उपलब्ध थी बाजार में लेकिन उसके दाम इतने ज़्यादा थे कि हर कोई उसे खरीद पाने में सक्षम नहीं था. आरडी वर्मा को इस विषय में 100% अंक प्राप्त थे इसीलिए वह आगे आए और उन्होंने इस विषय पर किताब लिखने का मन बनाया. इस तरह आरडी शर्मा ने 1986 में अपनी पहली किताब लिखी. यह किताब इतनी सफल रही कि यूनिवर्सिटी द्वारा इसे अगले 10-11 साल तक इस्तेमाल किया गया.