जैसा की हम सभी जानते है की आज के समय में महंगाई इस कदर बढ़ रही है कि अब आटा, चावल से लेकर रसोई का हर सामान महंगा हो गया है लेकिन इस महंगाई में भी अगर कुछ नहीं बदला है तो भारतीयों के लोकप्रिय बिस्किट पार्ले जी के दाम….
पारले-जी बिस्कुट (Parle-G Biscuit), किसी के लिए केवल एक किफायती बिस्कुट ब्रांड है, तो कुछ लोगों की भावनाएं सीधे इससे जुड़ी हैं। आज भी आपको ये बिस्किट केवल 5 रूपए में मिल जाएगा। इसके पीछे का क्या गणित है आज अपनी इस पोस्ट के जरिये हम आपको समझाने जा रहे हैं।
25 साल तक एक ही कीमत
25 साल तक पारले-जी बिस्किट के छोटे पैकेट की कीमत चार रुपये ही रही। आखिर इस महंगाई के दौर में भी कंपनी ने इस कीमत को कैसे बरकरार रखा है, इसका पूरा गणित स्विगी के डिजाइन डायरेक्टर सप्तर्षि प्रकाश ने समझाया है। प्रकाश ने लिंक्डइन (Linkedin) पर लिखा कि कभी सोचा है, ऐसा कैसे संभव है? इसके बाद उन्होंने इसका कैलकुलेशन बताया।
मनोवैज्ञानिक तरीके का इस्तेमाल
प्रकाश बताते हैं, ‘साल 1994 में पारले-जी बिस्किट के एक छोटे पैकेट की कीमत चार रुपये थी और साल 1994 से लेकर 2021 तक पारले-जी के छोटे पैकेट कीमत चार रुपये ही रही। तकरीबन 26 साल बाद रेट में एक रुपये का इजाफा हुआ और पैकेट की कीमत पांच रुपये हो गई। कभी आपने सोचा है ये कैसे हो सकता है? दरअसल, पारले ने इतने बड़े स्तर पर प्रसिद्धि हासिल करने के लिए एक बेहद जबरदस्त मनोवैज्ञानिक तरीका अपनाया है।’
पैकेट की साइज होती गई छोटी
मनोवैज्ञानिक तरीके के बारे में बताते हुए प्रकाश कहते हैं- ‘अब जब भी मैं छोटा पैकेट कहता हूं, तो आपके दिमाग में क्या आता है? एक ऐसा पैकेट जो आसानी से आपके हाथ में फिट बैठ जाए और पैकेट के भीतर मुट्ठी भर बिस्किट होते हैं। पारले ने इस तरीके को बखूबी समझा इसलिए उसने कीमतों में इजाफा करने की बजाए लोगों के दिमाग में अपने छोटे पैकेट की धारणा को बरकरार रखा। फिर धीरे-धीरे इसके साइज कम करने शुरू कर दिया, समय के साथ छोटे पैकेट का साइज छोटा होते गया, लेकिन कीमतों में इजाफा नहीं हुआ।’
कितना कम हुआ वजन
प्रकाश ने समझाया, ‘पहले पारले-जी 100 ग्राम के पैकेट के साथ शुरू हुआ और कुछ साल बाद उन्होंने इसे 92.5 ग्राम और फिर 88 ग्राम कर दिया और अब 5 रुपए की कीमत वाले छोटे पैकेट का वजन केवल 55 ग्राम रह गया है। 1994 में शुरुआत के बाद से अब तक हुई ये कटौती 45 प्रतिशत है। तकनीक को ग्रेसफुल डिग्रेडेशन बताते हुए उन्होंने बताया कि आलू के चिप्स, चॉकलेट बार और टूथपेस्ट बनाने वाली कंपनियां भी इसी तरीके से काम करती हैं।’