इस संसार में लोग शान शौकत से जीना काफी पसंद करते हैं वह चाहते हैं कि हम जिंदगी जिए तो पूरे शाही अंदाज में जीए और उसके लिए वह कठिन परिश्रम भी करते हैं.
अपनी जिंदगी को अपने परिवार को इस शाही आराम और राहत देने का पूरे प्रयत्न करते हैं चाहिए अंदाज में जिंदगी जीना सभी का सपना होता है।
लेकिन आज हम आपसे ऐसी एक परिवार के बारे में चर्चा करने जा रहे हैं जो शाही परिवार से ताल्लुक रखती हैं लेकिन सादा जीवन जीने में उनका विश्वास है तो आइए हम आपसे चर्चा करते हैं।
उस परिवार के बारे में उस परिवार की बेटी जोके महारानी होने के बाद भी सादा जीवन जीना पसंद करती है.हम बात कर रहे हैं बड़ौदा की महारानी राधिकाराजे गायकवाड की कहानी बाकी शाही परिवार से बहुत अलग है.
महारानी राधिकाराजे गायकवाड़ दिखने में बहुत खूबसूरत है लेकिन वह ठाठ-बाट की जिंदगी नहीं बल्कि एक आम इंसान की तरह ही जिंदगी जीती है.टोनआपसे चर्चा करते है राधिकाराजे गायकवाड से जुड़ी कुछ खास बातें.
आपको बता दें राधिका राजे गायकवाड़ का जन्म वांकानेर के शाही परिवार में हुआ, राधिका के पिता जो वांकानेर के महाराज कुमार डॉ रंजीत सिंह शाही परिवार से ताल्लुक रखने वाले एकमात्र ऐसे इंसान थे जिन्होंने शाही परिवार का सुख छोड़कर आईएएस अधिकारी बनने का निर्णय लिया था.
वहींउनकी बेटी यानी कि राधिका का भी कहना है कि वह अपने शाही परिवार की चमक धमक के बजाय एक वास्तविक जीना पसंद करती है. आपको बता दें शाही परिवार से ताल्लुक रखने वाली महारानी राधिका ने 2002 में बड़ोदरा के महाराजा समरजीत सिंह से विवाह किया था.
राधिकाराजे का कहना है कि वर्ष 1984 में भोपाल में गैस त्रासदी हुई थी तो इस दौरान मेरे पिता वहां कमिश्नर के रूप में तैनात थे. इस दौरान मेरी उम्र मात्र 6 साल की थी. लेकिन मुझे आज भी याद है कि मेरे पिता अपनी ड्यूटी करने के साथ लोगों की मदद भी कर रहे थे.
उस रात मैंने पहली चीज ये सीखी कि आप बिना उंगली उठाए चीजों के ठीक होने की उम्मीद नहीं कर सकते.यह एक ऐसी चीज थी जो मैंने अपने पिता से बड़े होने के दौरान सीखी थी.राधिका ने बातचीत के दौरान बताया हम लोग बहुत सामान्य जिंदगी जीते थे इसलिए जब भी मैं गर्मियों की छुट्टी के दौरान वांकानेर जाती थी तो वहां के लोगों से मिलने वाला आदर सत्कार मुझे बहुत अच्छा लगता था.
मुझे शुरू से ही अपनी जिंदगी अपने तरीके से जीना पसंद थी. इसलिए इतिहास में ग्रेजुएशन करने के बाद मैंने नौकरी ढूंढना शुरू कर दी. 20 वर्ष की उम्र में मुझे इंडियन एक्सप्रेस में बतौर लेखिका जॉब मिल गई.इस जॉब के साथ साथ ही मैंने अपनी मास्टर डिग्री भी कंप्लीट की.मैं अपने परिवार की पहली ऐसी महिला थी जो बाहर नौकरी के लिए जाती थी वही जबकि मेरे चचेरे भाइयों की शादी मात्र 21 साल की उम्र में हो गई थी.उन्होंने करीब 3 वर्ष तक पत्रकार की जॉब की.
इसके बाद उनके माता-पिता ने उनकी शादी की तैयारी शुरू कर दी थी.राधिका का कहा “बड़ौदा के राजकुमार समरजीत से मिलने से पहले भी मैं कुछ पुरुषों से मिल चुकी थी लेकिन समरजीत के विचार बाकी लोगों से अलग थे.जब मैंने उनसे आगे पढ़ने की बात कही तो उन्होंने इसमें मेरा साथ दिया और मुझे आगे पढ़ने के लिए भी प्रोत्साहित किया.खबरों के अनुसार शादी के पश्चात राधिका बड़ौदा की लक्ष्मी विलास पैलेस में रहती थी. इस दौरान उन्होंने पैलेस की दीवारों पर लगी पेंटिंग से प्रेरित होकर नया काम शुरू किया. “
बड़ौदा महल की दीवारों पर राज रवि वर्मा की पेंटिंग्स लगी थी.मैंने सोचा कि क्यों ना इस पेंटिंग से प्रेरित बुनाई की पुरानी तकनीकों का नया किया जाए.इस तरह में स्थानीय बुनकरों को भी सशक्त बना सकती थी.मैंने अपनी सास के साथ मिलकर इसकी शुरुआत की जो बहुत सफल रही.इतना ही नहीं बल्कि मुंबई में हमारी पहली प्रदर्शनी पूरी तरह से बिक गई”
राधिका ने बातचीत के दौरान बताया कि लॉकडाउन के समय हमने उन ज़रुरत मंद लोगों की मदद करने के लिए सोचा और अपनी बहन के साथ मिलकर सोशल मीडिया के द्वारा ऐसे लोग की खोज की और 700 परिवार की हमने मदद भी की.महारानी राधिकाराजे का कहना है “कभी-कभी लोग खुद से ही मान लेते की महारानी होने का मतलब सिर्फ ताज पहन कर रखना है।
लेकिन हकीकत इस चमक-धमक से कोसों दूर है.मैंने पारंपरिक रूढ़ियों को तोड़ा और अपनी सीमाएं खुद बनाई. मैंने वही किया जिसकी उम्मीद लोगों को मुझसे नहीं थी.यही विरासत में मैं अपनी बेटियों को दे रही हूं ताकि वह अपने तरीके से अपने जिंदगी जी सके और किसी भी चीज का बिल्कुल भी पछतावा ना करें”शाही परिवार से ताल्लुक रखने के बाद भी राधिका कि ऐसे उच्च विचार हैं
उन्होंने मेहनत और एक साधारण जीवन जीने की लगन है. और दूसरे जरूरतमंद परिवारों के लिए भी उनके मन में काफी सहानुभूति है. वरना शाही परिवार का होने के बाद इंसान शाही ऐशो आराम और ठाठ बाट से कहां पीछे हटता है.