आलिया भट्ट को ‘गंगूबाई काठियावाड़ी’ के ट्रेलर में देखकर ही लोग उनकी एक्टिंग पर फ़िदा होने लगे थे। लेकिन फिल्म देखने के बाद आपको समझ आता ही कि उन्होंने असल में किया क्या है। उनका लहजा, बॉडी लैंग्वेज, आवाज़ का भारीपन और आंखें सबकुछ जैसे आपको स्क्रीन से चिपका कर रखने वाला कोई मायाजाल हों। आप इस मायाजाल में फंसते जाते हैं और संजय लीला भंसाली अपनी कहानी में आपको अन्दर ले जाते रहते हैं।
फिल्म की कहानी शुरू होती है 14 साल की एक बच्ची से जिसका प्रेमी उसे कमाठीपुरा की बदनाम गली में बेचकर भाग गया है। वो अपनी देह बेचने के खिलाफ अड़ी रहती है तब उस कोठे की बाई तय करती है कि अब गंगूबाई को बुलाना पड़ेगा। और फिर आती है गंगूबाई उर्फ़ गंगा जिसकी कहानी में आप गोते खाते रहते हैं। बैरिस्टर की बेटी गंगा, जिसे उसका प्रेमी रमणीक, बदनाम गली के एक कोठे पर 1000 रूपए में बेचकर भाग गया था। उसके बाद क्या हुआ ये सब आप फिल्म में ही देखें तो बेहतर है।
गंगू की कहानी में एक गैंग्सटर भी हैं जिसका रोल निभा रहे हैं अजय देवगन। जिन्हें हर बार फ्रेम में देखकर एक अलग ही मज़ा आता है। रज़ियाबाई बने विजय राज़, जो जितनी भी देर स्क्रीन पर हैं आपकी पलकें नहीं झपकने देते। और गंगू के इश्क में डूबे अफसान के रोल में शांतनु माहेश्वरी, जिनकी अदाओं के आप फैन हो जाएंगे। आलिया पर वापिस लौटें तो ‘कमाठीपुरा का चांद’ गंगूबाई बनीं आलिया ने इस किरदार में खुद को घोल दिया है।
स्क्रीन पर आलिया को खोजना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है। और फिर जब वो कोठे पर पैदा हुए बच्चों की पढ़ाई के लिए। वहां रह रहीं सेक्स-वर्कर्स के हक के लिए और न्याय के लिए आवाज़ उठाती है तो उसकी बातों का वजन एक तथाकथित सभी समाज पर इस तरह गिरता है कि वो ज़मीन में धंस जाए। इस पूरे बीच उसके सबसे बड़े साथी रहते हैं फिल्म के डायलॉग जो पूरी बारीकी बनाए रखते हुए भी ज़ोरदार मारक क्षमता रखते हैं। इन एक-एक लाइनों में ही फिल्म जिंदा हो जाती है।
भंसाली ने स्क्रीन पर बॉलीवुड के ‘हीरो’ फ़ॉर्मूला को उलटकर, अपनी गंगूबाई को कहानी का नायक बनाया है। चाहे रोमांस हो या फिर शराब पीकर बहकी बातें करने वाले सीन। और उनके हर आईडिया को स्क्रीन पर हकीकत में बदलती रहती हैं आलिया भट्ट। ‘गंगूबाई’ मारक मुद्दे वाली ज़ोरदार फिल्म है जिसे ज़रूर देखा जाना चाहिए।