कोई भी थ्रिलर कहानी लिखते हुए राइटर को ये ध्यान रखना होता है कि प्लॉट में इतना भी सस्पेंस न आ जाए कि दर्शक को शुरुआत में कुछ समझ ही न आए और वो बोर होकर उठ जाए। इसलिए कहानी में दर्शकों को फंसाने के लिए जगह-जगह दाने डाले जाते हैं। एमेज़ॉन प्राइम का नया शो ‘बेस्टसेलर’ इस मामले में बहुत अलग है, इस शो में आपसे कुछ छुपाया ही नहीं गया। काश ऐसी पारदर्शिता हमारी सरकारों में होती!
इस शो की की कहानी का अंदाजा लगाना इतना आसान है कि आधे शो यानी ठीक 4 एपिसोड पर आकर आपको लग सकता है कि अरे सारा सस्पेंस तो ख़त्म। लेकिन ऐसा नहीं है। शो आगे भी चलता है, भले बॉलीवुडिया फिल्म मेकिंग स्कूल टाइप स्क्रीनप्ले का अंदाजा लगाना आपके लिए बहुत आसान हो।
बॉलीवुड के लेजेंड्स में शुमार मिथुन चक्रवर्ती इस शो से डिजिटल डेब्यू कर रहे हैं और एक बात तो है कि उनके लिए ये रोल टेलरमेड लगता है। हालांकि, उनके कैरेक्टर में कुछेक एलिमेंट्स हैं जो 90s की मसाला फिल्मों से ज़बरदस्ती उधार लेकर घुसाए हुए लगते हैं। लेकिन परफॉरमेंस के मामले में शो की पूरी कास्ट का ज़ोर तो मानना पड़ेगा। जहां श्रुति हर बीतते एपिसोड के साथ और बेहतर होती जाती हैं, वहीं अर्जन बाजवा और गौहर खान पहले फ्रेम से पूरे फॉर्म में लगते हैं।
सत्यजीत दुबे की ये परफॉरमेंस भी याद रखने लायक है और उनके लिए आगे और दरवाज़े खोलेगी। सातवें एपिसोड में गौहर का एक सीन है जिसमें वो जितना रो रही हैं उतना ही हंस भी रही हैं। ये सीन देखकर आपके रोंगटे खड़े हो सकते हैं। हालांकि सारे एक्टर्स के साथ ये गड़बड़ है कि उन्हें उनकी मेहनत लायक स्क्रिप्ट नहीं मिली। शो में अर्जन बाजवा एक सेलेब्रिटी राइटर हैं जिनकी बुक बेस्टसेलर हो गई है।
श्रुति की बातें और उसकी कहानी में राइटर साहब दिलचस्पी लेने लगते हैं और बात निकलती है तो दूर तक चली जाती है। दूसरी तरफ इस राइटर की बीवी, यानी गौहर खान अपने एक इंटर्न (सत्यजीत) से इम्प्रेस हुई चली जा रही हैं। लेकिन कहानी में और भी एलिमेंट्स हैं जो दिखते नहीं मगर असर बहुत गहरा रखते हैं जैसे कि एक ट्रोल जिसका यूज़र नेम है ‘वजीर इज गॉड’ और वो राइटर साहब से घनघोर नफरत करता है। इतनी कि उनका सबकुछ तबाह कर देना चाहता है और सबसे पहला अटैक राइटर की फैन पर करता है।
केस की जांच करने आ जाते हैं कॉप मिथुन और उनकी असिस्टेंट सोनाली कुलकर्णी। सोनाली के कैरेक्टर से कहानी में थोड़ा और काम लिया गया होता तो उनकी एक्टिंग का लोहा और मजबूती दिखा पाता। इधर मामले की जांच होनी शुरू होती है और उधर मामला उलझता चला जाता है और संगीन हो जाता है। फिर शुरू होता है खेल जिसके क्लू आप बहुत जल्दी समझने लगते हैं और वो स्क्रीन पर एकदम टिपिकल फ़िल्मी स्टाइल में ओवर-ड्रामेटिक बैकग्राउंड स्कोर के साथ चलता रहता है।