भुज: द प्राइड ऑफ इंडिया के साथ नहीं कर सके निर्माता न्याय, एक बेहतरीन कहानी को हल्के में लेना पड़ सकता है महंगा

Ranjana Pandey
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कुछ सालों से बॉलीवुड के लिए बीती लड़ाईयों के इतिहास को पर्दे पर उतारना एक फैशन बन गया है। खास तौर पर भारत-पाकिस्‍तान युद्ध जैसे विषय को लेकर हर साल कोई ना कोई फिल्म जरुर आती है।

फिल्ममेकर्स भी सोचते हैं कि राष्ट्रवाद और देशभक्ति के माहौल के बीच भारतीय सेना के प्रति लोगों की भावनाएं और बड़े स्टार कास्ट की फैन फॉलोइंग फिल्म को सफल बना देगी। लेकिन यदि आप किसी गंभीर विषय को हल्के में लेकर कुछ भी खिचड़ी पकाएंगे तो यकीन मानिए स्वाद सड़ा ही होगा। ऐसा ही स्वाद दे गई ओटीटी पर रीलीज हुई फिल्म भुज ।

कैसी है फिल्म की कहानी?

फिल्म की कहानी 1971 युद्ध के दौरान पाकिस्तान के कायराना हमले और भारत के साहसिक जीत पर आधारित है।पाकिस्तानी सेना द्वारा भारत के पश्चिमी एयरबेसेस पर किए गए हमले में भुज को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाया गया था।

पाकिस्तान ने 14 नेपाम बम गिराकर भुज की एयरस्ट्रिप को तबाह कर दिया था, लेकिन भारतीय वायुसेना के स्क्वाड्रन लीडर विजय कार्णिक ने सुरेंदरबेन जेठा माधरपाया और उनके जैसी करीब 300 महिलाओं की मदद से एयरस्ट्रिप को महज 72 घंटे के भीतर दुरुस्त कर लिया था और भारत ने पाकिस्तान के मंसूबों को नेस्तनाबूत कर दिया था। इस शानदार कहानी को जिस माला में पिरोना चाहिए था वो बिल्कुल नहीं था। कहीं गुलाब के साथ गेंदा तो कहीं गेंदे के साथ लिली का फूल नजर आ रहा था।

फिल्म सिक्वेंस पड़ गई भारी

फिल्म में सीक्वेंश का ना होना इस फिल्म को खा गया। कहीं का सीन कहीं और कहीं की कहानी कहीं कुल मिलाकर सिर्फ दर्शकों को इंटरटेनमेंट के नाम पर कुछ भी दिखाने की कोशिश की गई है।

निर्माता चाहते तो एक कसी हुई कहानी पर पूरी पटकथा का फिल्मांकन करते। लेकिन ऐसा नहीं हो सका। कुछ एक्सन सीक्वेंस को छोड़ दें तो फिल्म में कहानी को लेकर ज्यादा मेहनत नहीं की गई है। जिससे बड़े स्टार कास्ट के बाद भी दर्शक इस फिल्म की तरफ नहीं झुक पा रहे हैं।

 

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