जिस सिगरेट को पीकर लोग फेंक देते हैं, एक शख्स ने उससे खड़ी कर दी करोड़ों की कंपनी..

Mahaveer Nagar
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दोस्तों भारत में करोड़ों व्यक्ति सिगरेट का सेवन करते हैं. कई व्यक्ति 1 दिन में दो-तीन बार भी लेते हैं. और सिगरेट पीने के बाद बची सिगरेट को फेंक देते हैं. आज हम आपको एक ऐसे व्यक्ति से मिलाने जा रहे हैं. जिसने सिगरेट के इन फिल्टर का यूज कर करोड़पति बन गया. चलो जानते हैं. कि आखिरकार यह व्यक्ति सिगरेट पीने के बाद फेंकी गई बची सिगरेट का किस तरह यूज करता है.

साल 2018 की बातें की नमन नाम का एक लड़का जो कि कॉलेज में पढ़ाई किया करता था कॉलेज टाइम में उसके कई दोस्त सिगरेट पिया करते थे और फिल्टर को कभी जमीन पर फेंक देते, कभी डस्टबिन में डाल देते. एक दिन अचानक दिमाग में खयाल आया कि सिगरेट के इन फिल्टर्स का क्या होता है? उसके बाद नमन ने उस पर रिसर्च की तो चौंक गया। ब्राउन या सफेद कागज में लिपटा कॉटन की तरह दिखने वाला ये फिल्टर असल में सेलुलोज एसिटेट होता है. ये एक तरह का फाइबर है, जो गलने में 10 से 12 साल का वक्त लेता है.

नमन के बड़े भाई साइंस बैकग्राउंड से थे. नमन ने उनकी मदद से इस तरह की मशीनें तैयार करवाईं जो सिगरेट बट को 100% तक रीसाइकिल कर सके। 4-5 महीनों के ट्रायल के बाद आखिरकार हम वहां पहुंच गए, जहां हम सिगरेट वेस्ट मैनेजमेंट पर कंपनी बना सकते थे. हमने इसे नाम दिया- कोड एफर्ट प्राइवेट लिमिटेड।

कंपनी खोलने के बाद हमारे पास सबसे बड़ा चैलेंज था कि हम सिगरेट बट कहां से और कैसे कलेक्ट करें. क्योंकि भारत में हर दिन 10 हजार करोड़ से ज्यादा सिगरेट बट की खपत होती है. लोग दुकानों पर, सार्वजनिक जगहों पर, चलते-फिरते रास्ते में कहीं भी सिगरेट पीकर फेंक देते हैं.इसलिए हमने सबसे ज्यादा मेहनत वेस्ट कलेक्ट करने को लेकर किया.

सबसे खतरनाक वेस्ट प्रोडक्ट सिगरेट का फिल्टर है। कॉटन की तरह दिखने वाली चीज बड़ी जिद्दी होती है। इसके लिए हमने कारखाने में रिसाइकिल मशीन लगा रखी है। इस प्रक्रिया से गुजरा हुआ फिल्टर रूई की तरह नर्म हो जाता है। फिर इसे दोबारा ट्रीट किया जाता है ताकि किसी किस्म का केमिकल या गंदगी न रह जाए। इसके बाद इससे सॉफ्ट टॉयज, तकिया जैसी चीजें बनाई जाती हैं.

नमन बताते हैं कि “सिगरेट बट से बने बाय प्रोडक्ट को हम ऑनलाइन प्लेटफॉर्म,डिस्ट्रीब्यूटर और सेल्समैन के जरिए बेचते हैं. इसके अलावा कॉर्पोरेट से बल्क ऑर्डर लेकर भी इन प्रोडक्ट्स की डिलीवरी करते हैं।” इस काम से करीब 1000 लोग जुड़े हैं.साल 2018 में कुछ लाख की रकम के साथ नोएडा में शुरू हुआ उनका काम अब मध्य प्रदेश, राजस्थान, दिल्ली, यूपी, कर्नाटक सहित कई राज्यों में 250 जिलों तक फैल चुका है जिससे कि नमन अब करोड़ों रुपए कमाता है.

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