बॉलीवुड में अगर बेहतरीन कलाकारों की सूचि तैयार की जाए तो उसमें नवाजुद्दीन सिद्दीकी का नाम तो जरूर ही शामिल होगा। अपनी शानदार एक्टिंग से वो लाखो फैंस के दिलों में लंबे समय से छाए हुए हैं लेकिन यहां तक पहुंचन के लिए नवाजुद्दीन ने काफी मेहनत की है। आज भले ही उनके चाहने वालों की कोई कमी नहीं है लेकिन एक वक्त ऐसा भी था जब उन्हें अपनी रोजमर्रा की जिंदगी को चलाने के लिए चौकीदारी तक करनी पड़ी थी।
नवाजुद्दीन सिद्दीकी ने बॉलीवुड में अपना सफर शुरू करने के लिए बहुत मेहनत की है। उत्तर प्रदेश के छोटे से कस्बे में पैदा हुए नवाज की किस्मत उन्हें आज इस मोड़ पर लेकर आ जाएगी, किसी ने भी नहीं सोचा था। नवाज जब छोटे थे तो उनके घर में टीवी नहीं हुआ करता था, सारा काम छोड़कर वो दूसरे के घर में जाकर टीवी देखा करते थे और यहीं से उनके मन में हीरो बनने के सपने ने जगह ले ली।
करनी पड़ी थी चौकीदार की नौकरी
नवाज ने दिल्ली में साल 1996 में नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा से अभिनय की पढ़ाई पूरी की। इसके बाद वह किस्मत आजमाने मुंबई चले गए, नवाज को खुद कभी ये उम्मीद नहीं थी कि वे इतने ज्यादा मशहूर हो जाएंगे। नवाज सिद्दीकी ने एक्टिंग स्कूल में दाखिला तो जैसे तैसे ले लिया था, लेकिन उनके पास रहने को घर नहीं था तो उन्होंने यहां आकर चौकीदार की नौकरी कर ली। नवाज को यह नौकरी मिल तो गई लेकिन शारीरिक रूप से वह काफी कमजोर थे इसलिए ड्यूटी पर वह अक्सर बैठे ही रहते थे। यही कारण था कि मालिक के देखने के बाद उन्हें नौकरी से हाथ धोना पड़ा। वहीं, उनको सिक्योरिटी अमाउंट भी रिफंड नहीं किया गया।
नवाज सिद्दीकी अपने संघर्ष के दिनों में कुछ भी कर गुजरने को तैयार रहते थे।फिल्मों में आने के बाद भी नवाज ने वेटर, चोर और मुखबिर जैसी छोटी- छोटी भूमिकाओं को करने में भी कोई शर्म महसूस नहीं की। एक्टर ने शूल, मुन्ना भाई MBBS और सरफरोश जैसी फिल्मों में ये छोटे-छोटे किरदार निभाए।
धीरे-धीरे बने बड़ा नाम
नवाज सिद्दीकी को अनुराग कश्यप की फिल्म ब्लैक फ्राईडे में काम करने का मौका मिला। उसके बाद फिराक, न्यूयॉर्क और देव डी जैसी फिल्मों में काम मिला। सुजोय घोष की ‘कहानी’ में उनका काम सराहा गया। ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’ तक आते आते नवाज स्टार बन चुके थे।
चाहे ‘बंदूकबाज’ में बाबू मोशाय का किरदार हो या सेक्रेड गेम्स का गणेश गायतोंडे, सभी किरदारों से नवाज ने फैंस का दिल जीता है। आज जिस नवाज की मिसाल दी जाती है दरअसल वहां तक पहुंचने के लिए उन्होंने कड़ी मेहनत की है। एक वक्त ऐसा था जब उन्हें दो वक्त का खाना भी ठीक से नसीब नहीं होता था।